भारत, एक बड़ा और विविध देश, अपने चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से लोकतंत्र की मजबूती को सुनिश्चित करता है। इस बड़े देश को संघवाद से बचाने और विकास के क्षेत्र में गति प्रदान करने के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ की प्रासंगिकता को लेकर चर्चा हो रही है। यह लेख इस प्रस्तुत विचार को विस्तृत रूप से समझाने का प्रयास करेगा। “One Nation – One Election” का सिद्धांत भारतीय संविधान के अनुच्छेद-83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन से प्रतिष्ठापित हुआ है। इसे लागू करने के लिए अनुच्छेद-368 के तहत आधे से ज्यादा राज्यों की सहमति आवश्यक है। इसका पूरा कार्य सरल नहीं है, क्योंकि देश हित के कार्यों पर सभी राजनीतिक दलों को मिलकर सहमत होना चाहिए।
पूर्व अनुभव एवं समस्याएँ और चुनौतियाँ
इस नीति का पूर्व अनुभव है, और वर्ष 1952, 1957, 1962, और 1967 में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाएं साथ-साथ चुनी गईं थीं। इसके बाद से होने वाले विभिन्न चुनावों ने हमें यह सिखाया है कि एक देश एक चुनाव का सिस्टम प्रबल हो सकता है। इस परिवर्तन की दिशा में कई चुनौतियाँ हैं। सबसे पहले, संघवाद की अवधारणा को सुधारना होगा ताकि चुनावी प्रक्रिया में सहमति हो सके। राज्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस बदलाव को आगे बढ़ाना जरूरी है। संविधान में परिवर्तन का अभ्यास करने के साथ-साथ, राजनीतिक दलों को इस मुहिम में शामिल करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
एक देश एक चुनाव की अगर बात की जाए, तो इसका सीधा और सकारात्मक प्रभाव विकास में देखा जा सकता है। इससे सरकारी खजाने पर अतिरिक्त दबाव कम होगा और विभिन्न विकास कार्यों के लिए समर्थन मिलेगा। एक समय पर होने वाले चुनाव से प्रशासनिक तारतम्यता में भी सुधार होगा और केंद्र-राज्य सहयोग में भी वृद्धि होगी।
विश्व में उदाहरण – One Nation – One Election
विभिन्न विकसित देशों ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए अलग-अलग मॉडल अपनाए हैं। अमेरिका में चुनावों का एक निश्चित दिन है जो देश को स्थिरता प्रदान करता है। दक्षिण अफ्रीका में विधानसभा और प्रांतीय विधानसभा चुनाव पाँच साल के अंतराल में एक साथ होते हैं, जबकि नगरपालिका चुनाव दो साल के बाद होते हैं। ब्रिटेन में संसद अधिनियम-2011 ने संसद के कार्यकाल को निश्चित अवधि के लिए स्थिर किया है। स्वीडन में चुनाव चार साल के अंतराल में एक निश्चित तिथि को होते हैं। जर्मनी में भी संघीय गणराज्य के लिए विशेष नियम हैं जो नये रचनात्मक वोट को अविश्वास के खिलाफ प्रोत्साहित करते हैं।
भारत में इस नीति को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता है, जिसके लिए अधिकांश राज्यों की सहमति चाहिए। इसके अलावा, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता की स्थापना के लिए जनता को इस प्रक्रिया में सहयोग करना होगा।
समाप्ति
“एक देश, एक चुनाव” की अभिवादना करते हुए, यह निष्कर्ष है कि इस नीति को साकारात्मक रूप से लागू करना भारत को एकमुश्त चुनावी प्रक्रिया की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इससे समग्र चुनावी प्रणाली में सुधार होगा, और देश को सशक्त बनाने की दिशा में एक सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। इस प्रयास में सफलता प्राप्त करने के लिए सभी सामाजिक और राजनीतिक दलों को मिलकर काम करना होगा ताकि भविष्य में भारत समृद्धि की ऊँचाइयों को छू सके।
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