Binding Energy: Definition and formula

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बाइंडिंग एनर्जी (Binding Energy) वह ऊर्जा होती है जो किसी नाभिक (nucleus) को उसके घटक प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों में विभाजित करने के लिए आवश्यक होती है। इसे नाभिकीय ऊर्जा के रूप में भी जाना जाता है, जो नाभिक के स्थायित्व और ताकत को दर्शाती है।

Definition of Binding Energy: Binding energy is the smallest amount of energy required to remove a particle from a system of particles or to disassemble a system of particles into individual parts.

Derivation of Binding Energy: बाइंडिंग एनर्जी की व्युत्पत्ति आइंस्टीन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2E=mc^2 पर आधारित होती है। इस समीकरण के अनुसार, ऊर्जा और द्रव्यमान में सीधा संबंध होता है। किसी नाभिक का कुल द्रव्यमान उसके घटक कणों के द्रव्यमान से कम होता है। यह द्रव्यमान का अंतर (mass defect) बाइंडिंग एनर्जी के रूप में ऊर्जा में बदल जाता है।

Formula For Binding Energy:

आइंस्टीन के समीकरण E=mc2E=mc^2 के अनुसार, जहाँ cc प्रकाश की गति होती है: E=Δm⋅c2E = \Delta m \cdot c^2

यह ऊर्जा नाभिक को उसके घटक कणों में विभाजित करने के लिए आवश्यक होती है, और यही बाइंडिंग एनर्जी है।

बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन

बाइंडिंग एनर्जी को प्रति न्यूक्लिऑन भी व्यक्त किया जाता है, जो नाभिक की स्थिरता का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। इसे निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है: बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन=EA\text{बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन} = \frac{E}{A}

जहाँ AA कुल न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन + न्यूट्रॉन) की संख्या है।

  1. नाभिकीय द्रव्यमान (Nuclear Mass): नाभिक के कुल द्रव्यमान को नाभिकीय द्रव्यमान कहा जाता है।
  2. द्रव्यमान दोष (Mass Defect): यह नाभिक के कुल द्रव्यमान और उसके स्वतंत्र घटक कणों के कुल द्रव्यमान के बीच का अंतर होता है।
  3. बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन (Binding Energy per Nucleon): यह प्रति न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन या न्यूट्रॉन) की बाइंडिंग एनर्जी को दर्शाता है।

Binding Energy Curve or Nuclear binding energy:

 

Binding Energy Curve
Binding Energy Curve

 

बाइंडिंग एनर्जी कर्व (Binding Energy Curve) एक ग्राफ है जो नाभिकीय बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन या न्यूट्रॉन) को न्यूक्लिऑन संख्या (A) के साथ दर्शाता है। यह कर्व नाभिक की स्थिरता और नाभिकीय प्रतिक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बाइंडिंग एनर्जी कर्व के प्रमुख बिंदु

  1. हल्के नाभिक (Light Nuclei):
    • हल्के नाभिकों (जैसे हाइड्रोजन, हीलियम) के लिए, बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन की मान कम होती है।
    • जैसे-जैसे न्यूक्लिऑन संख्या बढ़ती है, बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन भी बढ़ती जाती है।
  2. मध्यवर्ती नाभिक (Intermediate Nuclei):
    • लगभग 56 न्यूक्लिऑन संख्या (जैसे आयरन-56) पर, बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन का मान अधिकतम होता है।
    • इस क्षेत्र के नाभिक सबसे स्थिर होते हैं क्योंकि उनकी बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन सबसे अधिक होती है।
  3. भारी नाभिक (Heavy Nuclei):
    • न्यूक्लिऑन संख्या 56 के बाद, बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन धीरे-धीरे कम होने लगती है।
    • भारी नाभिक (जैसे यूरेनियम, थोरियम) की बाइंडिंग एनर्जी प्रति न्यूक्लिऑन कम होती है।

बाइंडिंग एनर्जी कर्व का महत्व

  1. नाभिकीय स्थिरता (Nuclear Stability):
    • बाइंडिंग एनर्जी कर्व से यह समझा जा सकता है कि कौन से नाभिक स्थिर होते हैं। अधिक बाइंडिंग एनर्जी वाले नाभिक अधिक स्थिर होते हैं।
  2. नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion):
    • हल्के नाभिक एक दूसरे के साथ मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं। इस प्रक्रिया में बाइंडिंग एनर्जी बढ़ती है और ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। यह प्रक्रिया सूर्य और अन्य तारों में होती है।
  3. नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission):
    • भारी नाभिक छोटे नाभिकों में विभाजित होते हैं। इस प्रक्रिया में भी बाइंडिंग एनर्जी बढ़ती है और ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। यह प्रक्रिया नाभिकीय रिएक्टरों और परमाणु बमों में होती है।

बाइंडिंग एनर्जी कर्व नाभिकीय भौतिकी का एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो नाभिक की स्थिरता, नाभिकीय संलयन और विखंडन की प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है। यह ग्राफ यह दर्शाता है कि नाभिकीय प्रतिक्रियाओं के माध्यम से ऊर्जा कैसे उत्पन्न की जा सकती है और कौन से नाभिक सबसे स्थिर होते हैं।

Importance of Binding Energy:

  1. नाभिकीय स्थायित्व (Nuclear Stability): उच्च बाइंडिंग एनर्जी वाले नाभिक अधिक स्थिर होते हैं।
  2. नाभिकीय संलयन और विखंडन (Nuclear Fusion and Fission): बाइंडिंग एनर्जी की जानकारी नाभिकीय संलयन और विखंडन की प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण होती है।
  3. आइंस्टीन का ऊर्जा-द्रव्यमान समीकरण: बाइंडिंग एनर्जी का अध्ययन आइंस्टीन के समीकरण को समझने में मदद करता है।

बाइंडिंग एनर्जी का अध्ययन नाभिकीय भौतिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल नाभिक के स्थायित्व को दर्शाता है बल्कि ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रियाओं जैसे कि नाभिकीय संलयन और विखंडन को भी समझने में मदद करता है। बाइंडिंग एनर्जी की अवधारणा नाभिकीय संरचना और उसकी ऊर्जा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है, जो भौतिकी और इंजीनियरिंग दोनों में आवश्यक है।

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