Human Development Index in India एक सांख्यिकीय उपकरण है, जिसका उपयोग किसी देश में मानव विकास के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। यह सूचकांक जीवन प्रत्याशा, शिक्षा स्तर, और प्रति व्यक्ति आय जैसे तीन प्रमुख मानदंडों के आधार पर देशों को रैंक करता है। एचडीआई का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि किसी देश में लोग कितना अच्छा जीवन जी रहे हैं। भारत, एक विकासशील देश के रूप में, मानव विकास के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है। इस लेख में, हम भारत में एचडीआई के विभिन्न पहलुओं और चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे।
मानव विकास सूचकांक का इतिहास
मानव विकास सूचकांक का विचार 1990 में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक और भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित किया जाता है और इसमें मुख्य रूप से तीन संकेतकों का उपयोग किया जाता है:
- जीवन प्रत्याशा: यह संकेतक एक देश में लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा को मापता है। इसका उद्देश्य यह देखना है कि देश में स्वास्थ्य सेवाएँ कितनी बेहतर हैं और लोग कितने लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
- शैक्षिक प्राप्ति: इसमें साक्षरता दर और स्कूल में औसत वर्षों की शिक्षा को शामिल किया जाता है। यह संकेतक किसी देश में शिक्षा के स्तर को मापता है।
- प्रति व्यक्ति आय: यह संकेतक किसी देश में प्रति व्यक्ति आय को मापता है, जो लोगों की आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर को दर्शाता है।
भारत में एचडीआई का वर्तमान स्थिति
भारत की एचडीआई रैंकिंग पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे बेहतर हुई है, लेकिन इसे अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। 2021 में, भारत की एचडीआई रैंकिंग 0.645 थी, जिससे यह दुनिया के 189 देशों में 131वें स्थान पर था। यह रैंकिंग भारत को “मध्यम मानव विकास” वाले देशों की श्रेणी में रखती है।
भारत में एचडीआई के घटक
- स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने हाल के वर्षों में कुछ सुधार किए हैं, लेकिन यह अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की अनुपलब्धता, और कुपोषण जैसी समस्याएँ प्रमुख हैं। हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- शिक्षा: शिक्षा के क्षेत्र में भारत ने पिछले कुछ दशकों में काफी प्रगति की है। साक्षरता दर में सुधार हुआ है, और स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अभी भी शिक्षा के स्तर में बड़ा अंतर है। उच्च शिक्षा में नामांकन दर भी अपेक्षाकृत कम है।
- आय: आर्थिक विकास के बावजूद, भारत में आय वितरण असमान है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आय का बड़ा अंतर है। इसके अलावा, गरीब और अमीर वर्गों के बीच भी आय का काफी अंतर है। हालांकि, “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसी सरकारी योजनाओं ने रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में मदद की है।
चुनौतियाँ और सुधार के अवसर
भारत के एचडीआई को बेहतर बनाने के लिए कई चुनौतियाँ और सुधार के अवसर हैं:
- गरीबी उन्मूलन:
गरीबी अभी भी भारत की एक प्रमुख समस्या है। इसे दूर करने के लिए सरकार को आर्थिक नीतियों और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को और मजबूत करने की आवश्यकता है। मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। - शिक्षा में सुधार:
शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए सरकार को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके अलावा, उच्च शिक्षा में निवेश को भी बढ़ाना होगा। इसके साथ ही, डिजिटल शिक्षा और कौशल विकास पर भी ध्यान देना आवश्यक है। - स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार:
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की पहुंच को बढ़ाना होगा। इसके अलावा, बच्चों में कुपोषण और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन इस दिशा में मदद कर सकता है। - आर्थिक असमानता का समाधान:
आर्थिक असमानता को कम करने के लिए आय वितरण को और अधिक न्यायसंगत बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) को प्रोत्साहन देना होगा।
निष्कर्ष
Human Development Index in India के मामले में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में प्रगति की है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बरकरार हैं। देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, और आय के क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। सरकारी योजनाओं और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन से भारत की एचडीआई रैंकिंग को और बेहतर बनाया जा सकता है। यह आवश्यक है कि देश के सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त हो, ताकि वे अपने जीवन स्तर को सुधार सकें और देश के विकास में योगदान दे सकें। भारत को इस दिशा में निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है, जिससे वह उच्च मानव विकास के स्तर को प्राप्त कर सके।
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