Semiconductor in Hindi: Definition, Types of Semiconductor & Use of Semiconductor

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Semiconductor in Hindi-सेमीकंडक्टर, जिसे अर्धचालक भी कहा जाता है, एक ऐसी सामग्री है जिसकी विद्युत चालकता अर्ध मार्गीय होती है, अर्थात यह न तो पूरी तरह चालक होती है और न ही पूरी तरह अचालक। सेमीकंडक्टर का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सर्किट्स के निर्माण में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। आज की आधुनिक दुनिया में, सेमीकंडक्टर तकनीक ने हमें डिजिटल युग में प्रवेश कराया है।

  1. चालकता का नियंत्रण: सेमीकंडक्टर की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसकी चालकता को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसे विभिन्न तरीकों से डोपिंग करके (अलग-अलग अशुद्धियाँ मिलाकर) उसकी विद्युत गुणधर्म बदली जा सकती है।
  2. पीएन जंक्शन: सेमीकंडक्टर का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पीएन जंक्शन है। जब एक पी-टाइप सेमीकंडक्टर और एक एन-टाइप सेमीकंडक्टर को जोड़ते हैं, तो एक जंक्शन बनता है जिसे डायोड कहते हैं। यह जंक्शन विद्युत प्रवाह को केवल एक दिशा में ही जाने देता है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  3. ट्रांजिस्टर: सेमीकंडक्टर तकनीक में ट्रांजिस्टर का आविष्कार एक क्रांति की तरह है। ट्रांजिस्टर एक ऐसा उपकरण है जो विद्युत संकेतों को बढ़ा सकता है और स्विच की तरह काम कर सकता है। ट्रांजिस्टरों का उपयोग कंप्यूटर चिप्स, रेडियो, टेलीविजन, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है।

Types of Semiconductors:

सेमीकंडक्टर, जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आधार हैं, को उनके गुणधर्मों और संरचना के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। यहां हम सेमीकंडक्टर के प्रमुख प्रकारों का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं:

1. Intrinsic सेमीकंडक्टर:

अधार्मिक सेमीकंडक्टर शुद्ध रूप में पाए जाने वाले सेमीकंडक्टर होते हैं, जिनमें कोई भी अशुद्धियाँ नहीं होती हैं। इनकी चालकता पूरी तरह से तापमान पर निर्भर करती है।

  • उदाहरण: शुद्ध सिलिकॉन (Si), जर्मेनियम (Ge)
  • चालकता का कारण: उच्च तापमान पर, वलेंस बैंड से कुछ इलेक्ट्रॉन कंडक्शन बैंड में चले जाते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन-होल पेयर्स उत्पन्न होते हैं।

2. Extrinsic सेमीकंडक्टर:

अधार्मिक सेमीकंडक्टर वे होते हैं जिन्हें डोपिंग के माध्यम से संशोधित किया गया होता है। इनमें अशुद्धियाँ मिलाई जाती हैं ताकि उनकी चालकता बढ़ाई जा सके। इन्हें दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है:

  • एन-टाइप (N-Type) सेमीकंडक्टर: इसमें पंचवेलेंट (पाँच संयोजकता) तत्व मिलाए जाते हैं, जैसे फॉस्फोरस (P), आर्सेनिक (As)।
    • प्रमुख चार्ज कैरियर: इलेक्ट्रॉन
    • उदाहरण: सिलिकॉन में फॉस्फोरस का डोपिंग
  • पी-टाइप (P-Type) सेमीकंडक्टर: इसमें त्रिवेलेंट (तीन संयोजकता) तत्व मिलाए जाते हैं, जैसे बोरॉन (B), एलुमिनियम (Al)।
    • प्रमुख चार्ज कैरियर: होल्स
    • उदाहरण: सिलिकॉन में बोरॉन का डोपिंग

3. Compound Semiconductors:

यौगिक सेमीकंडक्टर विभिन्न तत्वों के यौगिक से बने होते हैं। ये सामान्यतः उच्च गति और विशिष्ट ऑप्टिकल गुणधर्मों के लिए उपयोगी होते हैं।

  • उदाहरण:
    • गैलियम आर्सेनाइड (GaAs): उच्च गति इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग होता है।
    • कैडमियम सल्फाइड (CdS): फोटोवोल्टिक सेल और प्रकाश संवेदक में उपयोग होता है।
    • इंडियम फॉस्फाइड (InP): माइक्रोवेव उपकरणों में उपयोग होता है।

4. Organic Semiconductors:

ऑर्गेनिक सेमीकंडक्टर कार्बनिक यौगिकों से बने होते हैं। ये हल्के, लचीले और विशिष्ट अनुप्रयोगों में उपयोगी होते हैं।

  • उदाहरण: पॉलिमर सेमीकंडक्टर, जैसे पॉलीथायोफीन।
  • उपयोग: फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, डिस्प्ले, और सोलर सेल।

5. Nano Semiconductors:

नैनोसेमीकंडक्टर नैनोमेट्रिक स्केल पर काम करते हैं और इनका उपयोग नैनोटेक्नोलॉजी में होता है। इनसे बने उपकरणों के गुणधर्म पारंपरिक सेमीकंडक्टर से भिन्न हो सकते हैं।

  • उदाहरण: कार्बन नैनोट्यूब्स (CNTs), क्वांटम डॉट्स।
  • उपयोग: नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, और जैवसंवेदी उपकरण।

P-N Junction:

p-type Semiconductor in Hindi:

पी-टाइप सेमीकंडक्टर वह सेमीकंडक्टर है जिसमें डोपिंग के माध्यम से त्रिवेलेंट (तीन संयोजकता) तत्व, जैसे बोरॉन (B) या एलुमिनियम (Al) मिलाए जाते हैं। इस डोपिंग से वलेंस बैंड में होल्स (छिद्र) की संख्या बढ़ जाती है, जो प्रमुख चार्ज कैरियर होते हैं। होल्स सकारात्मक चार्ज की तरह व्यवहार करते हैं और विद्युत चालकता में योगदान देते हैं। पी-टाइप सेमीकंडक्टर का उपयोग ट्रांजिस्टर, डायोड, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है, जहां एन-टाइप सेमीकंडक्टर के साथ मिलकर पीएन-जंक्शन बनाते हैं, जो विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करता है।

n-type Semiconductor in Hindi

एन-टाइप सेमीकंडक्टर वह सेमीकंडक्टर है जिसमें डोपिंग के माध्यम से पंचवेलेंट (पाँच संयोजकता) तत्व, जैसे फॉस्फोरस (P) या आर्सेनिक (As) मिलाए जाते हैं। इस डोपिंग से अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन उत्पन्न होते हैं, जो प्रमुख चार्ज कैरियर होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन नकारात्मक चार्ज के रूप में विद्युत चालकता में योगदान करते हैं। एन-टाइप सेमीकंडक्टर का उपयोग ट्रांजिस्टर, डायोड, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है, जहां यह पी-टाइप सेमीकंडक्टर के साथ मिलकर पीएन-जंक्शन बनाते हैं, जो विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।

Use Of Semiconductor:

  1. कंप्यूटर और मोबाइल उपकरण: सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग कंप्यूटर प्रोसेसर, मेमोरी चिप्स, और ग्राफिक्स कार्ड में होता है। यह चिप्स कंप्यूटर और मोबाइल फोन को तेजी से और कुशलतापूर्वक काम करने में मदद करते हैं।
  2. दैनिक उपयोग के उपकरण: टीवी, रेडियो, माइक्रोवेव, वाशिंग मशीन, और रेफ्रिजरेटर जैसे उपकरणों में सेमीकंडक्टर का उपयोग होता है, जिससे ये उपकरण अधिक स्मार्ट और ऊर्जा-कुशल बनते हैं।
  3. स्वास्थ्य देखभाल: सेमीकंडक्टर तकनीक का उपयोग चिकित्सा उपकरणों जैसे एमआरआई स्कैनर, अल्ट्रासाउंड मशीन, और अन्य डिजिटल डायग्नोस्टिक उपकरणों में किया जाता है।

भविष्य में सेमीकंडक्टर

सेमीकंडक्टर तकनीक का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। नवाचार और अनुसंधान सेमीकंडक्टर को और अधिक उन्नत और कुशल बना रहे हैं। नैनो टेक्नोलॉजी और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्र सेमीकंडक्टर तकनीक को नए आयाम दे रहे हैं।

Bond Theory Of Semiconductors:

बांड थ्योरी, जिसे बंध सिद्धांत भी कहा जाता है, सेमीकंडक्टर की विद्युत गुणधर्मों को समझाने के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह सिद्धांत इस बात की व्याख्या करता है कि कैसे विभिन्न ऊर्जा स्तरों में इलेक्ट्रॉनों का वितरण सेमीकंडक्टर की चालकता को प्रभावित करता है। बांड थ्योरी को समझने के लिए हमें सबसे पहले क्रिस्टल संरचना और इलेक्ट्रॉनों के व्यवहार को समझना होगा।

क्रिस्टल संरचना

सेमीकंडक्टर पदार्थ, जैसे सिलिकॉन और जर्मेनियम, क्रिस्टलीय संरचना में व्यवस्थित होते हैं। इस संरचना में प्रत्येक परमाणु अपने चारों ओर के अन्य चार परमाणुओं के साथ सहसंयोजक बंध (covalent bonds) बनाता है। इन बंधों के कारण एक ठोस क्रिस्टल संरचना बनती है।

ऊर्जा बैंड्स

बांड थ्योरी के अनुसार, सेमीकंडक्टर में इलेक्ट्रॉनों के ऊर्जा स्तरों को दो प्रमुख बैंड्स में विभाजित किया जाता है:

  1. वलेंस बैंड (Valence Band): यह वह बैंड है जिसमें इलेक्ट्रॉन सामान्यतः रहते हैं। यह ऊर्जा बैंड पूरी तरह भरा हुआ होता है और इसके इलेक्ट्रॉन बंधन बनाने में शामिल होते हैं।
  2. कंडक्शन बैंड (Conduction Band): यह वलेंस बैंड के ऊपर स्थित होता है और आमतौर पर खाली होता है। इस बैंड में इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं, जिससे विद्युत चालकता संभव होती है।

बैंड गैप

वलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच एक ऊर्जा अंतर होता है, जिसे बैंड गैप (Band Gap) कहा जाता है। यह बैंड गैप सेमीकंडक्टर की महत्वपूर्ण विशेषता है।

  • संकीर्ण बैंड गैप: छोटे बैंड गैप वाले सेमीकंडक्टर में इलेक्ट्रॉनों को कंडक्शन बैंड में जाने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे यह अधिक संवेदनशील होते हैं।
  • चौड़े बैंड गैप: बड़े बैंड गैप वाले सेमीकंडक्टर में इलेक्ट्रॉनों को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे यह उच्च तापमान पर भी अर्धचालक बने रहते हैं।
  1. इलेक्ट्रॉन-होल पेयर्स (Electron-Hole Pairs): जब एक इलेक्ट्रॉन वलेंस बैंड से कंडक्शन बैंड में जाता है, तो वह वलेंस बैंड में एक छिद्र (होल) छोड़ जाता है। यह होल सकारात्मक चार्ज की तरह व्यवहार करता है और चालकता में योगदान देता है।
  2. डोपिंग (Doping): सेमीकंडक्टर की चालकता को बढ़ाने के लिए इसे डोप किया जाता है। इसमें सेमीकंडक्टर में कुछ मात्रा में अशुद्धियाँ मिलाई जाती हैं।
    • एन-टाइप सेमीकंडक्टर: इसमें पंचवेलेंट (पाँच संयोजकता) तत्व मिलाए जाते हैं, जो अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन देते हैं।
    • पी-टाइप सेमीकंडक्टर: इसमें त्रिवेलेंट (तीन संयोजकता) तत्व मिलाए जाते हैं, जो होल्स की संख्या बढ़ाते हैं।

बांड थ्योरी सेमीकंडक्टर की विद्युत गुणधर्मों को समझाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह सिद्धांत हमें ऊर्जा बैंड्स, बैंड गैप, और इलेक्ट्रॉन-होल पेयर्स के माध्यम से सेमीकंडक्टर की कार्यप्रणाली को समझने में मदद करता है। सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में बांड थ्योरी का महत्व अत्यधिक है और यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास में एक आधारशिला की तरह कार्य करती है।

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